Madhu varma

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लेखनी कविता -निधरक तूने ठुकराया तब- जयशंकर प्रसाद

निधरक तूने ठुकराया तब- जयशंकर प्रसाद


निधरक तूने ठुकराया तब
 मेरी टूटी मधु प्याली को,
उसके सूखे अधर मांगते
 तेरे चरणों की लाली को.
जीवन-रस के बचे हुए कन,
 बिखरे अमर में आँसू बन,
वही दे रहा था सावन घन-
 वसुधा की हरियाली को .
निदय ह्रदय में हूक उठी क्या,
 सोकर पहली चूक उठी क्या,
अरे कसक वह कूक उठी क्या,
 झंकृत कर सुखी डाली को?
प्राणों के प्यासे मतवाले-
 ओ झंझा से चलने वाले!
ढलें और विस्मृति के प्याले,
 सोच न कृति मिटने वाली को.

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